Wednesday, February 20, 2013

मेरी िजदंगी के कुछ अनजान लमहों ने पूछा
 हमें पहचानते हो ?

 मुझे लगा शायद ये मजाक है !
 मेरा सवाल ओेर मेरा ही जवाब?

 बचपन के िखलोैने
 या अाज ठहरती सांसे
 कुछ भी तो नही भूला !

 स्कूल मे झूमते वो दो िवशाल बरगद
 घर से कुछ दूर था जंगल स्टोर
 थोड़ा फासले पर तालाब भी........
 हुआ करते थे!

 सब दाँव पर लगा िदया.....
 मेरे मािलक !

 िवकास एक जरूरत थी,,,
 दूसरे मुल्क तरक्की कर रहे थे ?
 लेिकन हम जंगलों में जी रहे थे
 अस्भ्य ओैर अपृत्यािशत जीवन !!

 मैने खुद को बदला......
 सोंच को बदला........
 ओैर खड़ा िकया.......
 इमारतों, पुलों का िनजाम......
 कारों, जहाजों, मोबाइलों ओैर दवाओं का
  िसमटने वाला दोैर ले अाया !!

 सीने को हाथों से दबाए
 चंद सांसों को थामता
 केैंसर ओैर एड्स से लड़ता
 लेिकन तरक्की करता......
 मैं इस मुकाम पर गया !!!

 एटािमक बमों, सगीनों के साये में
 िजदंगी जीने ओैर भिवष्य पालने की
 कल्पना करता.............
 यहां तक गया !!!!!

 काश, िक मै भूल सकूं
 अपनी तरक्की को...
 काश, िक पहचान सकूं
 उन अनजान लम्हों को....
 '' िजधर बदली थी मेरी राहें ''
 मेरे मािलक
 '' िजधर बदली थी मेरी राहें ''

 Forest Revolution - The Last Solution

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